भगवान शिव को ब्रह्मांड के तीन लोकों की सर्वोच्च शक्तियों में से एक माना जाता है। महा शिवरात्रि का दिन भगवान शिव को बहुत प्रिय है। उनकी श्रद्धा में मनाया जाने वाला महा शिवरात्रि भारत में हिंदुओं का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहार है।

भारत में इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है? महा शिवरात्रि, जो कि माघ महीने के 13 वें दिन या फाल्गुन या कृष्ण पक्ष की 14 वीं रात को मनाई जाती है।महा शिवरात्रि का दिन वह शिव पार्वती के विवाह का प्रतीक है। हिंदुओं की कई मान्यताएं महा शिवरात्रि के उत्सव से जुड़ी हैं।




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महाशिवरात्रि आने को है। तो क्यों ना आज हम आपको महाशिवरात्रि के इस पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कहानी को आपको अवगत कराते हैं।माता पार्वती प्रजापति दक्ष की सबसे छोटी और प्रिय पुत्री थी। जो कि बचपन से ही महादेव की भक्ति और उनसे प्रेम करती थी। और वह भगवान शिव से विवाह करने की इच्छुक भी थी।




और उधर महादेव अपने कैलाश पर्वत पर बषम में रमे तप करते रहते थे। किंतु जब महादेव के गणों को इस बात का पता चला कि पार्वती माता महादेव से प्रेम करती हैं। तो वह भी महादेव और माता पार्वती के एक साथ करने में लग गए।
तभी देवताओं ने कन्दर्प को पार्वती की मध के लिए भेजा पर महादेव ने उन्हें अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया।




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लेकिन माता पार्वती ने तो ठान ही लिया था। कि मैं विवाह करूंगी तो सिर्फ उस महादेव बैरागी से ही तभी माता पार्वती ने शिव को अपना पति बनाने के लिए बहुत कठोर तपस्या शुरू कर दी। तभी पार्वती माता की इस कठोर तपस्या से चारों ओर हाहाकार मच गया। बड़े-बड़े पर्वतों की नींव भी डगमगाने लगी।




तभी यह देखकर महादेव ने अपनी आंखें खोली और माता पार्वती से आव्हान किया कि वह किसी सुंदर राजकुमार से विवाह करें और महादेव ने यह भी कहा कि देवी तुम महलों में रहने वाली एक कोमल सामान कन्या हो जिसका किसी वैरागी तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं होगा।




भगवान शिव की ऐसी बातें सुनकर माता पार्वती ने कहा कि देव मैं प्रेम भी आपसे करती हूं और मैं विवाह भी आपसे ही करूंगी और मैंने यह निर्णय भी ले लिया है कि मैं पति के रूप में सिर्फ आपको ही स्वीकार करूंगी देवी पार्वती के ऐसे जिद्दी वचन सुनकर महादेव पिघल गए और माता पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हो गए भगवान शिव को माता पार्वती की हटी भाव देखकर ऐसा लगा कि पार्वती उन्हीं की तरह हटी है




इसलिए यह बंधन, जोड़ी आने वाले समय सभी व्यक्ति को नारी शक्ति का प्रमाण देगी। अब शादी की तैयारी जैसे जोरों शोरों से धूमधाम से शुरू हो गई लेकिन समस्या यह थी कि कहां महादेव पर्वत पर रहने वाले तपस्वी जिनका कोई परिवार नहीं था लेकिन मान्यता यह है कि एक वर अपने परिवार के साथ जाकर वधू का हाथ मांगना पड़ता है लेकिन महादेव तो अपना परिवार गण को ही मानते थे।




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अब महादेव ने भूत प्रेत और गण को अपने साथ ले जाने का निर्णय किया और वह चल भी दिए पर भगवान शिव तो वैरागी थे उन्हें क्या पता के विवाह में किस तरह से वस्त्र धारण करने पड़ते हैं तो उनके डाकिनीओ और चुड़ैलों और गण ने मिलकर महादेव को भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला गले में डाल दी जब अनोखी भगवान शिव की बारात माता पार्वती के द्वार पहुंची सभी देवता और माता पार्वती के परिवार वाले महादेव के इस रूप को देखकर हैरान हो गए और उनसे डर कर वहां पर उपस्थित सभी स्त्रियां भागने लगी ऐसा रूप देखकर महादेव का माता पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री का हाथ भगवान शिव को देने से मना कर देते हैं।




तभी माता पार्वती ने महादेव से प्रार्थना की देव आप अपना यह रूप बदल लीजिए और आपको यहां इस रूप में नहीं आना चाहिए था तभी महादेव कहने लगे कि देवी मेरा यह वही रूप है जिसमे मैं हमेशा रहता हूं तो तुमे तो मुझे इस रूप में ही स्वीकारना चाहिए तभी माता पार्वती बोली कि महादेव मुझे तो आपका यह रूप जान से भी अति प्रिय है पर हमारे परिवार और हमारे यहां उपस्थित सभी स्त्री पुरुष के लिए तो आप अपना यह बेस बदल सकते हैं




माता पार्वती के ऐसी बातों को सुनकर भगवान शिव ने सभी देवताओं को कहा कि वह उन्हें तैयार करें और जब देवता महादेव को तैयार कर देते हैं जिस रूप को देखकर वहां पर उपस्थित सभी भगवान शिव के रूप के मुंह में डूब जाते हैं जब माता पार्वती ने भगवान शिव के इस दिव्य रूप को देखती हैं। और प्रसन्न होकर महादेव को अपने पति के रूप में स्वीकार की हैं और विवाह समारोह आगे बढ़ाया जाता है। माता पार्वती ने शिव को और शिव ने माता पार्वती को जय माला डाली और यह अनोखा विवाह संपन्न हुआ। और इस दिन को ही शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
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